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बंजारा जाति का शिवजी से उत्पन्न होना-

 

banjara jati utpati




हम पिछले पोस्ट में बताये थे कि बंजारों की उत्पत्ति भगवान शिव जी के गणों से हुई थी तो कुछ लोगो को इस बात पर भरोसा नहीं था इसलिए हमें बोल रहे थे कि हम कैसे माने कि बंजारों की उत्पत्ति  भगवन शिव के गणों से हुई है इस आज की पोस्ट में हम कुछ ऐसे तत्व लाये है जिसे जानकर आप भी समझ पाएंगे कि  बंजारों की उत्पत्ति भगवन शिव के गणों से हुई है इसलिए बने रहें हमारे साथ और कमेंट्स बॉक्स में अपने विचार जरूर रखें


शिव गौरी से बंजारों का उत्पत्ति होने के सम्बन्ध में कुछ ऐसे और भी प्रमाणिक तत्व विद्यमान है जो इस समाज की रूढ़िवादी तौर पर अभी तक प्रचलित है जैसे कि-

1-पुरुष को गौर और स्त्री को गोरणी कहा जाता है जो कि शिवजी की प्रिया गौरा पार्वती को संकेत करता है यह बात नितांत सत्य है कि इस समाज के अतिरिक्त अन्य किसी भी समाज के स्त्री व पुरुष को गौर या गौरणी नहीं कहा जाता है यह भी बंजारा समाज की उत्पत्ति शिवजी से होने का बहुत ही ठोस प्रमाण है 

2-बैल पर सवारी करना या उसी के द्वारा जीवोपार्जन करना जो की भगवान शिव शंकर की सवारी नन्दी की ओर संकेत करता है

3-गेरू का व्यापार करना और इसी रंग के तंबू वा कपड़े रखना  हालांकि अब धीरे धीरे बहुत कुछ परिवर्तन हो गया है फिर भी अंदाजा लगाया जा सकता है। 


4-शिव की जटा के रूप में प्रत्येक पुरुष के सिर पर लटा बाल रखना

5-भांग और गुधरी को प्रत्येक सामाजिक अवसर पर विशेष मानता देना जैसे कि हम सभी जानते हैं हमारे समाज में होली पर मिठाई में भांग मिलाते है और उन्हे सब कोई खाता है। 

6-विवाह के समय वर के सिर के बालों पर पानी डालकर वधू की मां का नीना यह स्पष्टता वर को शिव का रूप मानकर उसकी जटा से गंगा का गंगोदक माना गया है। 

7-शादी होकर विवाह होते समय लड़की वधू एक बैल (जिसे खूब सजाकर उसे दहेज में सारा सामान मय कपड़ों की गुणी यानी (तागड़ी) से में भरकर बैल पर ला दिया जाता है।) पर खड़ी होकर माता पिता भाई बंधु एवं परिवार वालों को आशीर्वाद देती है जिसे ढाबला कहना कहते हैं उपरोक्त प्रचलित रीति-रिवाजों को देखने से पूर्णता समाज का शिव गौरी से प्रादुर्भाव होना प्रमाणित करता है

यह पहले बताया जा चुका है कि शिव जी ने अपने संकल्प से अनेक गणों की स्थापना कैसे की थी

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