बंजारा जाति का विदेशों में फैलाव
बंजारा शब्द संस्कृति के वाणिज्य से निकला है।
क्योंकि यह जाति घूम फिर कर व्यापार किया करती है।
बंजारों का उल्लेख संस्कृति के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है 11वीं और 12वीं सदी में लिखे गए संस्कृत ग्रंथ "दस कुमार चरित" में बंजारों का उल्लेख बताते हैं आर्यों ने इसे घुमक्कड़ जाति कहा है।
कहा जाता है कि बंजारे लोग पिछली सौ सदियों से भी पहले भारत के बाहर भी चक्कर लगाते थे
समुद्र के तटवर्ती बंदरगाहों से बालद (बैलों) में सामान भरकर सारे देशों में वितरण करने की एजेंसी के रूप में बड़े भारी व्यापार पैमाने पर यह कार्य करते रहे हैं।
प्राचीन काल में यह लोग बड़े भारी धनाढ्य थे लाखों की संख्या में बैल और हजारों की संख्या में काम करने वाले नौकर रहते थे सारे देशों में इनकी हुंडियां चलती थीं
यूरोप के घुमक्कड़ वही लोग हैं जिनके वंशज भारत,ईरान और मध्य एशिया में है जो किसी कारण अपने देश में वापस नहीं लौट पाए और सम्बंध विच्छेद हो जाने से कुछ के कुछ बन गए इंग्लैंड के जिप्सी और रूस के सिगान आदि भी भारतीय घुमक्कड़ जातियों में से ही है।
भारत में बसने वाली पासी,नट, भामट, बहेलिया,लंबाडी चेंचू, चारण, भाट, लंबाना, बोलदिया और बहुत सी जातियों को भी बंजारों के अंतर्गत ही माना जाता है लेकिन सच में ऐसा नहीं है वैसे यह सब जातियां बैलों पर बालद लादते एक ही प्रकार का व्यवसाय करती है, और यहां वहां घूमती रहती है।
किंतु गौर बंजारे इन सबसे सर्वथा भिन्न, स्वतंत्र जाति है।
गौर बंजारों का तो अनादि काल से ही बालद लादते वाणिज्य करने का मुख्य व्यवसाय रहा है और ये अन्य जातियां तो आपत्ति काल में इनके देखा देखी इस धंधे को अपना कर अपना बचाव व जीवन यापन किया है
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